बोर्ड परीक्षाओं में मेधावियों को बधाई, असफल विद्यार्थी निराश ना हो: मिन्नत गोरखपुरी

गोरखपुर। यह वक्त निराश होने का नहीं बल्कि नई ऊर्जा के संचार का है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार संघ भारत के राष्ट्रीय प्रवक्ता व गोरखपुर शहर के सुप्रसिद्ध शायर व संचालक ,समाजसेवी, साहित्यकारने हाईस्कूल तथा इंटरमीडिएट की परीक्षा में पास हुए सभी होनहार विद्यार्थियों को बहुत-बहुत बधाई दी एवं उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं दी।साथ ही उन्होंने इन परीक्षाओं में असफल रहे विद्यार्थियों को ढांढस बांधते हुए कहा कि ये निराश होने का समय (वक्त) नहीं है और उठकर खड़े हो जाएं और पुनः प्रयास करिये 1 दिन सफलता अवश्य ही आपका कदम चूमेगी।अपने संदेश में उन्होंने कहा कि असफल होने वाली विद्यार्थियों को *साहिर लुधियानवी* की इन पंक्तियों से सबक लेना चाहिए,
की हजार बर्क गिरे लाख आंधियां उटेठ, वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं।।
उन्होंने कहा कि मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि भारत की प्राचीन शिक्षा आध्यात्मिकता पर आधारित थी शिक्षा, मुक्ति एवं आत्मबोध के साधन के रूप में थी। यह व्यक्ति के लिए नहीं बल्कि धर्म के लिए थी। भारत की शैक्षिक सांस्कृतिक परंपरा विश्व इतिहास में प्राचीनतम है।
मिन्नत गोरखपुरी ने कहा कि डॉक्टर अल्टेकर के अनुसार, वैदिक युग से लेकर अब तक भारतवासियों के लिए शिक्षा का अभिप्राय यह रहा है कि शिक्षा प्रकाश का स्रोत है तथा जीवन के विभिन्न कार्यों में यह हमारा मार्ग आलोकित करती है। प्राचीन काल में शिक्षा को अत्यधिक महत्व दिया गया था। भारत विश्व गुरु कहलाता था। विभिन्न विद्वानों ने शिक्षा को प्रकाशस्रोत, अंतज्योति, ज्ञानचक्षु और तीसरा नेत्र आदि अपनों से विभूषित किया है। उस युग की मान्यता थी कि जिस प्रकार अंधकार को दूर करने का साधन प्रकाश है, उसी प्रकार व्यक्ति के सब समस्याओं  और संशयों और भ्रमो को दूर करने का साधन शिक्षा है।
विभिन्न सामानों से सम्मानित मिन्नत गोरखपुरी ने अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि प्राचीन भारत में जिस शिक्षा व्यवस्था का निर्माण किया गया था, वह समकालीन विश्व की शिक्षा व्यवस्था से समुन्नत वह उत्कृष्ट थी। दिल्ली किंग कालांतर में भारतीय शिक्षा का ह्रास हुआ। विदेशियों ने यहां की शिक्षा व्यवस्था को उस अनुपात में विकसित नहीं किया जिस अनुवाद में होना चाहिए था। अपने संक्रमण काल में भारतीय शिक्षा को कई चुनौतियों व समस्याओं का सामना करना पड़ा।
उन्होंने कहा कि आज भी यह चुनौतियां में समस्याएं हमारे सामने हैं जिन से दो-दो हाथ करना है। अट्ठारह सौ पचास तक भारत में गुरुकुल की प्रथा चली थी परंतु मैकाले द्वारा अंग्रेजी शिक्षा के संक्रमण के कारण भारत की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था का अंत हुआ और भारत में कई गुरुकुल और मदरसों को तोड़ दिया गया उनके स्थान पर कान्वेंट और पब्लिक स्कूल खोले गए। यह परीक्षाएं इन्हीं कान्वेंट स्कूलों की देन है, अतः मैं आप विद्यार्थियों एवं अभिभावकों से कहना चाहता हूं कि पुनः प्रयास करिए ये जीवन बहुत बड़ा है और संभावनाओं से भरा हुआ है। दुनिया के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक बिल गेट्स कहते हैं कि, मैं परीक्षाओं में कुछ विषयों में विफल रहते रहा, लेकिन मेरे दोस्त सभी विषयों में पास हो गए। अब वह माइक्रोसॉफ्ट में एक इंजीनियर है और मैं माइक्रोसॉफ्ट का मालिक हूं।तू साहब जीवन को त्यौहार जैसा मनाई और समूचे विश्व में छा जाइए,यह वक्त निराश होने का नहीं है यह वक्त अपने अंदर नई ऊर्जा का संचार करने का है।।।







                              भावदीय
         मिन्नत गोरखपुरी (ई.मो. मिन्नतुल्लाह)
समाजसेवी, शायर व संचालक, स्वतंत्र लेखक,
राष्ट्रीय प्रवक्ता
राष्ट्रीय मानवाधिकार संघ भारत

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