कारगिल दिवस पर शहीद की मजार पर हो रहा है शहीद की शहादत का अपमान



हरदोई जिले के कस्बा पाली के रहने वाले कारगिल युद्ध में देश के खातिर अपने प्राणों को न्यौछावर करने वाले शहीद आबिद खान की मजार हुई उपेक्षा का शिकार शासन प्रशासन नहीं दे रहा है ध्यान कारगिल दिवस के अवसर पर भी मजार पर लगे हैं गंदगी के ढेर और टूटी हुई बाउंड्री वॉल कर रही है शहीद की शहादत का अपमान सरकार के नुमाइंदे कर रहे हैं शहीद की शहादत का अपमान।




पाली के काजीसराय निवासी गफ्फार खां व नत्थन बेगम के सबसे बड़े पुत्र आबिद का जन्म छह मई 1972 को हुआ था। गरीबी में पले बढ़े आबिद ने जैसे तैसे हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की और पांच मार्च 88 को सेना में भर्ती हो गया।
आबिद को उसके साहसिक कार्यों को देखते हुए सन् 1995 में सेना मैडल प्रदान किया गया। 1995 में आबिद का फिरदौस के साथ निकाह हुआ। 1999 में 19 दिन की छुट्टी लेकर आखिरी बार आबिद घर आए और आते ही फौज से बुलाया आ गया। आबिद तत्काल अपनी यूनिट में पहुंच गए। वहां से कर्नल अजीत सिंह के नेतृत्व में 71 सैनिकों के जत्था 30 जून 99 की सुबह चार बजे टाइगर हिल से घुसपैठियों को खदेड़ने को चल दिया। इसमें सबसे आगे था लांस नामक आबिद खां। दो दिन तक भारत माता का वीर सपूत घुसपैठियों से लड़ता रहा। इनके दल के दस जवान शहीद हो चुके थे। अचानक एक गोली वीर जवान आबिद के पेट में आ धंसी।
घायलावस्था में भी आबिद ने ताबड़तोड़ 32 फायर झोंक कर 17 दुश्मनों को हलाल कर दिया। आबिद के कंधे पर दुश्मनों को छोड़े गए चार असलहे टंगे थे। आबिद दुश्मनों को ललकारते हुए आगे बढ़ते गए। अचानक एक गोली आबिद के गले में जा धंसी। गोली लगते ही वीर सपूत हमेशा हमेशा के लिए सो गया। ग्यारह दिनों बाद शहीद का पार्थिव शरीर गृह नगर पाली पहुंचा। जहां हजारों के हुजूम के बीच पूरे राजकीय सम्मान के साथ शहीद को दफना गया   शहीद के वालिद स्वगीय गफ्फार खां सरकार की वादा खिलाफी से आहत थे । वहीं आबिद के पिता होने पर गौरवान्वित भी थे। कारगिल विजय दिवस की बरसी याद कर मां-की आंखों से आंसू निकल पड़े। भीगी पलकों से बोली  उन्हें गर्व है कि वह शहीद के मां है। एक और बेटे खालिद को भी वतन की रक्षा को सेना में भेज दिया जो अब रिटायर हो चुका  हैं। दूसरे पुत्र नाजिर को सेना में भेजने की तमन्ना है। सरकारी इमदाद के तौर पर उनको मात्र 25 सौ रुपये मासिक पेंशन मिलती है। सड़क के किनारे पैतृक जमीन पर भी अड़ंगा है। एक कालेज उक्त भूमि स्कूल की बताकर कोर्ट में पहुंच गया है। उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार से अपेक्षा की कि वह शहीद के परिजनों के बारे में कुछ सोचे, जिससे शहीद के परिजन आत्म सम्मान की जिंदगी जी सकें।

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। लांस नायक शहीद आबिद की पत्नी फिरदौस बेगम की इच्छा भी अपने एक मात्र बेटे आदिल को सेना में भेजने की है, जिससे वह शौहर के रूप में अपने पुत्र को सेना की वर्दी में देख सके। आदिल इंटर की शिक्षा पाकर शासन द्वारा दिए गए पेट्रोल पंप की देखभाल करता है। मां अपने बेटे को अकसर उसके वालिद की बहादुरी के किस्से सुनाकर उनके जैसा बनने की प्रेरणा देती हैं। फिरदौस के चार बच्चों में सबसे बड़ी पुत्री चांदफरा का निकाह हो चुका है। वहीं 18 वर्षीय पुत्र आदिल पेट्रोल पंप चलाता है। उनकी दो पुत्रियां भी हैं। उन्हें गर्व है कि वह शहीद की पत्नी हैं। बस एक अरमान है कि पुत्र को भी सेना की वर्दी में देखना चाहती हैं।


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 देश की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति देने वाले आबिद की मजार उपेक्षा का शिकार है। वहां पर पड़ी गंदगी और टूटी हुई बाउंड्री वॉल शहीद की शहादत का अपमान करती हुई नजर आती है। जिले का प्रशासन भी संवेदन शून्य है, जिसने इस शहीद की मजार का सौंदर्यीकरण कराने तक की जहमत नहीं उठाई। शहीद की बेवा फिरदौस बी ने बताया कि वह और उनके परिवार के लोग शहीद आबिद खान की मजार पर दीपक जलाने जाते हैं। परिजनों ने बताया कि प्रशासन को चाहिए कि उनके पति  के लिए न सही किंतु शहीद होने के नाते  समाधि स्थल का सौंदर्यीकरण करा शहीदों का सम्मान करें। और लोगों ने जो खालिद खान ने सरकार और प्रशासन पर आरोप लगाए की  उनकी पुश्तैनी जमीन पर कब्जा कर रखा है  जो अभी तक उन्हें नही मिली है ।उसको कब्जा मुक्त कराया जाए शहीदों की कुर्बानियों को अगर सरकार के नुमाइंदे इसी तरह से भुला देंगे तो आने वाली भावी पीढ़ी हतोत्साहित होगी।

विसुअल
बाईट....--फ़िरदौस बेगम...शहीद आबिद की पत्नी
बाइट... खालिद खान ...पूर्व सैनिक शहीद का भाई

आनंद शुक्ला हरदोई 9918147000

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