पर्यटन मंत्रालय ने देखो अपना देश श्रृंखला के तहत ‘आध्यात्मिक त्रिकोण – महेश्वर,मांडु और ओंकारेश्वर’ नाम से अपने 42वेंवेबिनार का आयोजन किया
भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने देखो अपना देश श्रृंखला के तहत ‘आध्यात्मिक त्रिकोण – महेश्वर,मांडु और ओंकारेश्वर’ नाम से 18 जुलाई, 2020 को अपने 42वें वेबिनार का आयोजन किया।
वेबिनार की प्रस्तुति इंदौर की आयकर आयुक्त सुश्री आशिमा गुप्ता और सिंगापुर की मार्केटिंग पेशेवर सरिता अलुरकर ने की। इस वेबिनार में मध्य प्रदेश में स्थित महेश्वर,मांडु और ओंकारेश्वर के आध्यात्मिक त्रिकोण के तहत आने वाले गंतव्यों के मनोहारी प्राकृतिक छटाओं की समृद्धि का प्रदर्शन किया गया और इस तरह दर्शकों को इन मनोरम स्थानों से परिचित कराया गया। देखो अपना देश वेबिनार श्रृंखला एक भारत श्रेष्ठ भारत के तहत भारत की समृद्ध विविधता को प्रदर्शित करने का एक प्रयास है और यह वर्चुअल मंच के माध्यम से लगातार एक भारत श्रेष्ठ भारत की भावना का प्रसार कर रहा है।
इस आध्यात्मिक त्रिकोण का पहला पड़ाव महेश्वर या महिष्मती है जो ऐतिहासिक महत्व के साथ मध्य प्रदेश के शांत और मनोरम स्थलों में से एक है और यह इंदौर शहर से 90 किलोमीटर दूर है। शहर का नाम भगवान शिव / महेश्वर के नाम पर पड़ा है जिसका उल्लेख महाकाव्य रामायण और महाभारत में भी मिलता है। प्रस्तुतकर्ताओं ने रानी राजमाता अहिल्या देवी होल्कर के जीवन और उनके समय के बारे में विस्तार से बताया। यह शहर नर्मदा नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित है। मराठा होलकर शासनकाल के दौरान6 जनवरी,1818 तक यह मालवा की राजधानी थी। इसके बाद मल्हार राव होल्कर तृतीय द्वारा राजधानी को इंदौर स्थानांतरित कर दिया गया था। अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में,महान मराठा रानी राजमाता अहिल्या देवी होल्कर ने महेश्वर को अपनी राजधानी बनाया। उन्होंने कई इमारतों और सार्वजनिक स्थलों का निर्माण कराकर शहर को सजाया और यहां उनके महल के साथ ही कई मंदिर,एक किले और नदी के कई घाट स्थित हैं।
रानी राजमाता अहिल्या देवी होल्कर अपनी सादगी के लिए भी जानी जाती है। यह आज वहां के रजवाड़ा या रॉयल निवास को देखने से साफ हो जाता है जहां रानी अपने लोगों से मिलने के लिए दो मंजिला इमारत में जाती थी। पर्यटक आज भी वहां के तत्कालीन शाही व्यवस्था को रानी से संबंधित चीजों के रूप में देख सकते हैं और अनुभव कर सकते हैं।
वहां का अहिल्येश्वर मंदिरजहां अहिल्या देवी पूजा-पाठ करती थीं और अहिलेश्वर मंदिर के पास स्थित विठ्ठल मंदिर ऐसी जगह है जहां आप पूजा-पाठ के लिए और उनकी वास्तुकला की प्रशंसा करने के लिए जरूर ठहर जाएंगे। राजमाता द्वारा निर्मित यहां लगभग 91 मंदिर हैं।
महेश्वर में घाट सूर्योदय और सूर्यास्त की सुंदरता को देखने के लिए सबसे अच्छे स्थान हैं और किले का परिसर भी अहिल्या घाट से देखा जा सकता है। पर्यटक यहां नौकायान का भी मज़ा ले सकते हैं। शाम को सूर्यास्त के बाद नाविक नर्मदा नदी की स्तुति में छोटे-छोटे दीए जलाते हैं। भगवान शिव को समर्पित बाणेश्वर मंदिर महेश्वर के खास मंदिरों में से एक है जिसका शाम को सूर्यास्त के बाद दर्शन किया जा सकता है। नर्मदा घाट पर सूर्यास्त के बाद नर्मदा की आरती की जाती है।
कपड़ा यहां का एक और महत्वपूर्ण पहलू है जो अहिल्या देवी द्वारा विकसित किया गया है। उन्होंने सूरत और दक्षिण भारत के बेहतरीन बुनकरों को साड़ी बुनाई के लिए आमंत्रित किया था जो आज के दौर में मौजूद साड़ियों में अद्वितीय हैं। इन पर इस्तेमाल किए गए डिजाइन किले की वास्तुकला और नर्मदा नदी से प्रेरित हैं। इन साड़ियों को शाही मेहमानों को उपहार में दिया जाता था।
राजमाता अहिल्या देवी होल्कर कला की एक उदार संरक्षक थीं। उन्हें साड़ियां बेहद पसंद थीं और 1760 में उन्होंने सूरत के प्रसिद्ध बुनकरों को अपने राज्य को शाही परिवार के योग्य बढ़िया कपड़ों से समृद्ध करने के लिए बुलाया। देशी रियासतों के तहत बुनकर कलाएं आज के महेश्वरी कपड़ों में पनपी और विकसित हुईं। 1950 में जब कपास की बुनाई के साथ रेशम का इस्तेमाल किया जाने लगा तो फिर यह धीर-धीर प्रचलन में आ गया। 1979 में रहवा सोसायटी की स्थापना की गई जो एक गैर लाभकारी संगठन है और यह महेश्वर के बुनकरों के कल्याण के लिए काम करती है।
ओंकारेश्वर में 33 देवता हैं और दिव्य रूप में108प्रभावशाली शिवलिंग है और यह नर्मदा के उत्तरी तट पर स्थित एकमात्र ज्योतिर्लिंग है। ओंकारेश्वर इंदौर से 78 किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश का एक आध्यात्मिक शहर है। ममलेश्वर मंदिर के दर्शन के बिना ओंकारेश्वर मंदिर की यात्रा अधूरी है। यह भी माना जाता है कि भगवान शिव प्रतिदिन विश्राम करने के लिए यहां आते हैं और हर रोज शाम को साढ़े आठ बजे शयन आरती नामक एक विशेष आरती की जाती है और भगवान शिव तथा देवी पार्वती के लिए पासा के खेल की व्यवस्था भी की जाती है। यहां सिद्धनाथ मंदिर सबसे सुंदर मंदिर है। इस दिव्य मंदिर का दर्शन करने के लिए निश्चित रूप से मौका निकालना चाहिए।
मध्य प्रदेश राज्य के धार जिले में स्थित मांडू को मांडवगढ़,शादियाबाद (आनंद का शहर) के नाम से भी जाना जाता है। यह इंदौरा से लगभग 98 किलोमीटर दूर और633 मीटर की ऊंचाई पर है।मांडू के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन रतलाम (124 किमी।) है। मांडू का किला 47 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला है और चारों तरफ से किले की दीवार की लंबाई64 किलोमीटर है।
मांडू मुख्य रूप से सुल्तान बाज बहादुर और रानी रूपमती की प्रेम कहानी के लिए जाना जाता है। एक बार जंगल में शिकार करने के बाद लौटने के दौरान सुल्तानबाज बहादुर ने अपने दोस्तों के साथ एक चरवाहे की लड़की रूपमती को गाने गाते देखा। उसकी मोहक सुंदरता और सुरीली आवाज से वे काफी प्रभावित हुए और तब उन्होंने रूपमती को अपनी राजधानी में उनके साथ चलने के लिएआग्रह किया। रूपमतीइस शर्त पर मांडू जाने के लिए तैयार हुई कि उसे महल में ऐसी जगह रहने को दी जाए जहां से वो हर रोज अपनी प्रिय और मन्नतें पूरी करने वाली नदीनर्मदा के दर्शन कर सके। इसलिए मांडू में रीवाकुंड बनाया गया। रानी रूपमती की सुंदरता और मधुर आवाज के बारे में जानने के बादमुगलों ने मांडु पर आक्रमण करके बाज़ बहादुर और रूपमती दोनों पर कब्जा करने का फैसला किया। मुगलों के सामने मांडु आसानी से हार गया और जब विजयी मुगल सेना ने किले की ओर कूच किया तो उनकी गिरफ्त में आने से बचने के लिए रूपमती ने ज़हर खाकर अपनी जा दे दी।
16 वीं सदी में बना बाज बहादुर का महल बड़े आंगन और ऊंचे चबूतरों के साथ बड़े प्रांगन के लिए प्रसिद्ध है। यह रूपमती के मंडप के नीचे स्थित है और इसे मंडप से देखा जा सकता है।
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