राज्यपाल ने ‘1857 के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बहादुर शाह जफर के जीवन पर आधारित‘ कार्यक्रम का शुभारम्भ किया
लखनऊ: 28 दिसम्बर, 2018 उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्री राम नाईक आज उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा आयोजित ‘1857 के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बहादुर शाह जफर के जीवन पर आधारित‘ कार्यक्रम में उपस्थित हुये।
उन्होंने कहा कि सबसे पहले मैं बहादुर शाह जफर के परपोते प्रिंस मिर्जा फैजुद्दीन बहादुर शाह जफर तृतीय का यहां स्वागत एवं अभिनन्दन करता हँू तथा मैं 1857 के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बहादुर शाह जफर को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। उन्होंने कहा कि 1857 की इस पहली जंग को अंग्रेजों ने हुकूमत के खिलाफ बगावत का नाम दिया था पर वीर सावरकर ने इसे पहला स्वतंत्रता समर कहकर देश के सामने सही बात रखी। राज्यपाल ने कहा कि अंग्रेजी हुकूमत ने बहादुर शाह जफर को देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में सैनिकों का नेतृत्व करने के कारण मुल्क बदर कर रंगून की जेल में कैद कर दिया था। रंगून जेल में ही 7 नवम्बर, 1862 को बहादुर शाह जफर की मृत्यु हो गई।
राज्यपाल ने कहा कि 6 अगस्त, 2017 को अपनी म्यांमार यात्रा के दौरान वहां स्थित बहादुर शाह जफर की दरगाह पर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने गया था। उन्होंने कहा कि लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को भी रंगून की माण्डाला जेल में रखा गया था जहां उन्होंने गीता रहस्य जैसा ग्रंथ लिखकर लोगों को जागरूक करने का काम किया। राज्यपाल ने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मुगल साम्राज्य के आखिरी बादशाह देशभक्त बहादुर शाह जफर की विशिष्ट भूमिका को देश कभी भुला नहीं सकता है। बहादुर शाह जफर बहुत अच्छे इंसान के साथ ही एक अच्छे शायर भी थे। राज्यपाल ने कहा कि उनकी पहचान एक धर्मनिरपेक्ष शासक के रूप में थी। रंगून में रहते हुए उन्हें हर वक्त हिन्दुस्तान की चिन्ता रहती थी। उनकी अन्तिम इच्छा थी कि वह अपने जीवन की अन्तिम सांस भारत में ही लें, लेकिन ऐसा सम्भव नहीं हुआ। राज्यपाल ने कहा कि इतिहास की यह सबसे क्रूरतम सजा थी जिसमें उनकी इच्छा को पूरा नहीं किया गया जबकि सजा पाने वाले व्यक्ति की अन्तिम इच्छा को न्यायिक प्रक्रिया द्वारा पूरा किया जाता है।
राज्यपाल ने कहा कि अंग्रेजों के विरूद्ध शुरू हुए स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रथम प्रयास का नेतृत्व बहादुर शाह जफर ने किया। उस समय हिन्दुस्तानी सेना असंगठित थी तथा नेतृत्व करने वाले में अनुभव की कमी थी। इस कारण काफी कुर्बानियां देने के बाद भी पराजय का सामना करना पड़ा। राज्यपाल ने कहा कि बड़ी संख्या में 9 युवकों को फासी दी गई तथा बहादुर शाह जफर के परिवार के सदस्यों को कैद कर लिया गया और अधिकांश लोगों का कत्ल कर दिया गया।
राज्यपाल ने कहा कि अंग्रेज शासकों ने भारतीय सेनानियों के प्रति बर्बरता की सारी हदें उस समय पार कर दीं, जब बहादुर शाह जफर को लाल किले में कैद कर दिया और सुबह नाश्ते के वक्त बहादुर शाह जफर को उनके बेटों का कटा हुए सिर पेश किया। उन्होंने कहा कि अब आप लोग सोचिये कि हमारे देश के स्वतंत्रता सेनानियों ने किन-किन विकट परिस्थितियों और यातनाओं को झेला है। उनके बलिदानों के कारण ही आज हम स्वतंत्र भारत में सांस ले रहे हैं। देश की स्वतंत्रता हमें ऐसे बलिदानियों के प्रयास से मिली है जिनका लक्ष्य स्वराज था जिसे सुराज में बदलने की आवश्यकता है। राज्यपाल ने कहा कि इस अवसर पर मैं यह अवश्य कहना चाहूंगा कि देश को स्वतंत्रता दिलाने की लड़ाई सबने मिलकर लड़ी थी जिसमें हिन्दू, मुस्लिम, सिख जैसा कोई भेदभाव नहीं था। आज सबसे बड़ी जरूरत उसी एकता और सौहार्द के आधार पर भारत को फिर से विश्व गुुरू बनाने की है। उन्होंने कहा कि आज के नवयुवकों को इस बात की जानकारी अवश्य होनी चाहिए कि आजादी कितने संर्घषों और बलिदान के बाद मिली। राज्यपाल ने कहा कि युवाओं को देश के नवनिर्माण के लिए आगे आना चाहिए। देश के नवनिर्माण के लिए युवा हमारी बहुत बड़ी पूंजी एवं मानव संसाधन है। हमें देश को विकास पर आगे ले जाने के लिये संस्कारवान युवकों का निर्माण करना है।
राज्यपाल ने कहा कि सन् 1857 के अमर शहीदों के शौर्य और बलिदान गाथा इतिहास के पृष्ठों पर सदैव ही स्वर्ण अक्षरों में अंकित रहेगी तथा देश की वर्तमान और भावी पीढ़ी उनके जीवन और विचारों से सदा अनुप्राणित होती रहेगी। राज्यपाल ने कहा कि आगामी कुम्भ मेला में प्रयागराज संग्रहालय में 1857 से लेकर 1947 तक के शहीदों की गैलरी लगायी जायेगी, जिसमें उनसे सम्बन्धित जानकारी भी दी जायेगी।
राज्पाल श्री राम नाईक ने इससे पूर्व कार्यक्रम का शुभारम्भ दीप प्रज्वलित कर किया। राज्यपाल ने आयोजकों द्वारा बहादुर शाह जफर से सम्बन्धित एक मांग पत्र देने को कहा जिसे लेकर वे स्वयं राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री से मिलकर पूरा कराने का आश्वासन दिया। इस अवसर पर पूर्व मंत्री डाॅ0 अम्मार रिज़वी, उर्दू अकादमी की अध्यक्षा प्रोफेसर आसिफा जमानी, प्रिंस मिर्जा फैजुद्दीन बहादुर शाह जफर तृतीय, श्री आसिफ जमा रिजवी तथा बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक भी उपस्थित थे।
उन्होंने कहा कि सबसे पहले मैं बहादुर शाह जफर के परपोते प्रिंस मिर्जा फैजुद्दीन बहादुर शाह जफर तृतीय का यहां स्वागत एवं अभिनन्दन करता हँू तथा मैं 1857 के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बहादुर शाह जफर को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। उन्होंने कहा कि 1857 की इस पहली जंग को अंग्रेजों ने हुकूमत के खिलाफ बगावत का नाम दिया था पर वीर सावरकर ने इसे पहला स्वतंत्रता समर कहकर देश के सामने सही बात रखी। राज्यपाल ने कहा कि अंग्रेजी हुकूमत ने बहादुर शाह जफर को देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में सैनिकों का नेतृत्व करने के कारण मुल्क बदर कर रंगून की जेल में कैद कर दिया था। रंगून जेल में ही 7 नवम्बर, 1862 को बहादुर शाह जफर की मृत्यु हो गई।
राज्यपाल ने कहा कि 6 अगस्त, 2017 को अपनी म्यांमार यात्रा के दौरान वहां स्थित बहादुर शाह जफर की दरगाह पर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने गया था। उन्होंने कहा कि लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को भी रंगून की माण्डाला जेल में रखा गया था जहां उन्होंने गीता रहस्य जैसा ग्रंथ लिखकर लोगों को जागरूक करने का काम किया। राज्यपाल ने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मुगल साम्राज्य के आखिरी बादशाह देशभक्त बहादुर शाह जफर की विशिष्ट भूमिका को देश कभी भुला नहीं सकता है। बहादुर शाह जफर बहुत अच्छे इंसान के साथ ही एक अच्छे शायर भी थे। राज्यपाल ने कहा कि उनकी पहचान एक धर्मनिरपेक्ष शासक के रूप में थी। रंगून में रहते हुए उन्हें हर वक्त हिन्दुस्तान की चिन्ता रहती थी। उनकी अन्तिम इच्छा थी कि वह अपने जीवन की अन्तिम सांस भारत में ही लें, लेकिन ऐसा सम्भव नहीं हुआ। राज्यपाल ने कहा कि इतिहास की यह सबसे क्रूरतम सजा थी जिसमें उनकी इच्छा को पूरा नहीं किया गया जबकि सजा पाने वाले व्यक्ति की अन्तिम इच्छा को न्यायिक प्रक्रिया द्वारा पूरा किया जाता है।
राज्यपाल ने कहा कि अंग्रेजों के विरूद्ध शुरू हुए स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रथम प्रयास का नेतृत्व बहादुर शाह जफर ने किया। उस समय हिन्दुस्तानी सेना असंगठित थी तथा नेतृत्व करने वाले में अनुभव की कमी थी। इस कारण काफी कुर्बानियां देने के बाद भी पराजय का सामना करना पड़ा। राज्यपाल ने कहा कि बड़ी संख्या में 9 युवकों को फासी दी गई तथा बहादुर शाह जफर के परिवार के सदस्यों को कैद कर लिया गया और अधिकांश लोगों का कत्ल कर दिया गया।
राज्यपाल ने कहा कि अंग्रेज शासकों ने भारतीय सेनानियों के प्रति बर्बरता की सारी हदें उस समय पार कर दीं, जब बहादुर शाह जफर को लाल किले में कैद कर दिया और सुबह नाश्ते के वक्त बहादुर शाह जफर को उनके बेटों का कटा हुए सिर पेश किया। उन्होंने कहा कि अब आप लोग सोचिये कि हमारे देश के स्वतंत्रता सेनानियों ने किन-किन विकट परिस्थितियों और यातनाओं को झेला है। उनके बलिदानों के कारण ही आज हम स्वतंत्र भारत में सांस ले रहे हैं। देश की स्वतंत्रता हमें ऐसे बलिदानियों के प्रयास से मिली है जिनका लक्ष्य स्वराज था जिसे सुराज में बदलने की आवश्यकता है। राज्यपाल ने कहा कि इस अवसर पर मैं यह अवश्य कहना चाहूंगा कि देश को स्वतंत्रता दिलाने की लड़ाई सबने मिलकर लड़ी थी जिसमें हिन्दू, मुस्लिम, सिख जैसा कोई भेदभाव नहीं था। आज सबसे बड़ी जरूरत उसी एकता और सौहार्द के आधार पर भारत को फिर से विश्व गुुरू बनाने की है। उन्होंने कहा कि आज के नवयुवकों को इस बात की जानकारी अवश्य होनी चाहिए कि आजादी कितने संर्घषों और बलिदान के बाद मिली। राज्यपाल ने कहा कि युवाओं को देश के नवनिर्माण के लिए आगे आना चाहिए। देश के नवनिर्माण के लिए युवा हमारी बहुत बड़ी पूंजी एवं मानव संसाधन है। हमें देश को विकास पर आगे ले जाने के लिये संस्कारवान युवकों का निर्माण करना है।
राज्यपाल ने कहा कि सन् 1857 के अमर शहीदों के शौर्य और बलिदान गाथा इतिहास के पृष्ठों पर सदैव ही स्वर्ण अक्षरों में अंकित रहेगी तथा देश की वर्तमान और भावी पीढ़ी उनके जीवन और विचारों से सदा अनुप्राणित होती रहेगी। राज्यपाल ने कहा कि आगामी कुम्भ मेला में प्रयागराज संग्रहालय में 1857 से लेकर 1947 तक के शहीदों की गैलरी लगायी जायेगी, जिसमें उनसे सम्बन्धित जानकारी भी दी जायेगी।
राज्पाल श्री राम नाईक ने इससे पूर्व कार्यक्रम का शुभारम्भ दीप प्रज्वलित कर किया। राज्यपाल ने आयोजकों द्वारा बहादुर शाह जफर से सम्बन्धित एक मांग पत्र देने को कहा जिसे लेकर वे स्वयं राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री से मिलकर पूरा कराने का आश्वासन दिया। इस अवसर पर पूर्व मंत्री डाॅ0 अम्मार रिज़वी, उर्दू अकादमी की अध्यक्षा प्रोफेसर आसिफा जमानी, प्रिंस मिर्जा फैजुद्दीन बहादुर शाह जफर तृतीय, श्री आसिफ जमा रिजवी तथा बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक भी उपस्थित थे।
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