शांगरी-ला वार्ता में प्रधानमंत्री का संबोधन..
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज सिंगापुर में शांगरी-ला वार्ता के अवसर पर आसियान देशों के साथ भारत के संबंधों का जिक्र करते हुए कहा कि यह साल इन संबंधों का एक ऐतिहासिक वर्ष है। उन्होंने कहा कि जनवरी में भारत के गणतंत्र दिवस के अवसर पर दस आसियान देशों के नेताओं का उपस्थित होना भारत के लिए एक गौरव की बात थी। आसियान-भारत शिखर सम्मेलन आसियान देशों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता और ऐक्ट-ईस्ट नीति का प्रमाण रहा।
उन्होंने कहा कि हजारों वर्ष से भारत बड़ी आशाओं के साथ पूर्व की तरफ देखता रहा है। उसकी यह ललक सिर्फ सूर्योदय देखने के लिए नहीं रही, बल्कि उसने पूर्व की ओर से आने वाले प्रकाश से समूचा विश्व आलोकित हो यह कामना की है। प्रधानमंत्री ने कहा कि आज मानव जाति पूर्वी देशों की ओर इसलिए देख रही है, क्योंकि ऐसा माना जा रहा है कि एशिया प्रशांत क्षेत्र में होने वाली प्रगति का प्रभाव समूचे विश्व पर दिखेगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि क्षेत्र की प्रगति की सामूहिक इच्छा को मूर्त रूप देने के लिए सिंगापुर से बेहतर कोई और जगह नहीं हो सकती। मोदी ने कहा, ''आसियान के लिए सिंगापुर ही हमारा अहम पड़ाव रहा है। सदियों से सिंगापुर हमारे लिए पूर्व के लिए प्रवेश द्वार रहा है। सिंगापुर ही वह देश है, जो यह सिखाता है कि अगर समुद्री रास्ते सुरक्षित और खुले हों और इनके जरिए एक देश दूसरे से जुड़ते हों तो कानून का शासन स्थापित होता है और जिससे क्षेत्र के सभी छोटे-बड़े देशों में स्थायित्व और समृद्धि आती है।
उन्होंने कहा कि भारत के सिंगापुर का इसलिए विशेष महत्व है, क्योंकि वह ऐसा आसियान देश है, जो भारत के बेहद करीब स्थित है। पिछले 2000 वर्षों से मॉनसून की हवाओं समुद्री में उठने वाली लहरों और मानवीय आकांक्षाओं की ताकत हैं। भारत और सिंगापुर के बीच संबंधों को प्रागाढ़ बनाया है। ये संबंध शांति और मित्रता, धर्म और संस्कृति, कला और वाणिज्य, भाषा और साहित्य के रूप में ढले हैं।
श्री मोदी ने कहा कि पिछले तीन दशकों में भारत और सिंगापुर ने परस्पर संबंधों के इस आधार पर ही आसियान क्षेत्र में अपनी भूमिका फिर से परिभाषित किया है। सिंगापुर सहित सभी दक्षिण एशियाई देशों के साथ हमारे राजनीतिक, आर्थिक और रक्षा संबंध मजबूत हो रहे हैं। दुनिया के किसी हिस्से से ज्यादा व्यापार समझौते भारत ने इस क्षेत्र में किए हैं। सिंगापुर, जापान और दक्षिण कोरिया के साथ हमारे व्यापक आर्थिक संबंध मजबूत हुए हैं। आसियान और थाइलैंड देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते किए गए हैं। पूर्व में मलक्का की खाड़ी और दक्षिण चीन सागर भारत को प्रशांत क्षेत्र के अपने महत्वपूर्ण सहयोगियों आसियान, जापान, कोरिया गणराज्य और चीन से जोड़ता है। इन देशों के साथ हमारा व्यापार तेजी से बढ़ रहा है। हिंद महासागर क्षेत्र में भी पड़ोसी देशों के साथ हमारे संबंध मजबूत हो रहे हैं। हमें इन देशों को समुद्री सुरक्षा और आर्थिक सबलता में मदद कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर भारतीय सशस्त्र सेनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि विशेष रूप से भारतीय नौसेना हिंद प्रशांत क्षेत्र में शांति और सुरक्षा के लिए सहयोग कर रही है। वह मानवीय सहायता और आपदा की स्थितियों में बचाव कार्यों में भी मदद कर रही है। सिंगापुर के साथ जल्द ही भारत त्रिस्तरीय सैन्य अभ्यास करने जा रहा है, जिसे आगे चलकर आसियान देशों के साथ भी किया जाएगा। क्षेत्रीय सहयोग के तहत समुद्री डाकूओं से निपटने के लिए भी काम हो रहा है।
उन्होंने कहा कि भारत खुले हिंद प्रशांत क्षेत्र का पक्षधर है। उन्होंने कहा कि दुनिया अभी अपनी कामयाबी और हार के लिए लोग एक-दूसरे पर निर्भर है। कोई भी देश अपने बल पर आकार नहीं ले सकता और ना ही इसे सुरक्षित रख सकता है। ये ऐसी दुनिया है जो हमें सीमाओं और प्रतिस्पर्धा से ऊपर उठकर साथ काम करने के लिए कह रही है। ये संभव है। मैं आसियान को इसके उदाहरण और प्रेरणा के तौर पर देखता हूं।
श्री मोदी ने कहा कि आसियान देशों के साथ सहयोग और एशिया प्रशांत क्षेत्र के साथ गहरे जुड़ने के सभी प्रयास तभी संभव हो सकेंगे, जब हम बड़ी ताकतों के बीच दुश्मनी के पुराने दौर से निकलेंगे। प्रतिद्वंद्विता स्वाभाविक बात है, लेकिन ये युद्ध में नहीं बदलनी चाहिए। मतभेद को कभी भी विवाद में नहीं बदलने देना चाहिए। जब हम मिलकर काम करेंगे तो मौजूदा समय के वास्तविक खतरों से निपट सकेंगे।
प्रधानमंत्री तीन देशों की यात्रा के दूसरे चरण में गुरुवार को सिंगापुर पहुंचे। शुक्रवार को उनका सिडेंशियल पैलेस में औपचारिक स्वागत हुआ। प्रधानमंत्री ने सिंगापुर की राष्ट्रपति हलीमा याकूब और प्रधानमंत्री ली सिएन लूंग मुलाकात की। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय सहयोग, व्यापार, निवेश, कनेक्टिविटी और टेक्नोलॉजी बढ़ाने पर चर्चा हुई।
उन्होंने कहा कि हजारों वर्ष से भारत बड़ी आशाओं के साथ पूर्व की तरफ देखता रहा है। उसकी यह ललक सिर्फ सूर्योदय देखने के लिए नहीं रही, बल्कि उसने पूर्व की ओर से आने वाले प्रकाश से समूचा विश्व आलोकित हो यह कामना की है। प्रधानमंत्री ने कहा कि आज मानव जाति पूर्वी देशों की ओर इसलिए देख रही है, क्योंकि ऐसा माना जा रहा है कि एशिया प्रशांत क्षेत्र में होने वाली प्रगति का प्रभाव समूचे विश्व पर दिखेगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि क्षेत्र की प्रगति की सामूहिक इच्छा को मूर्त रूप देने के लिए सिंगापुर से बेहतर कोई और जगह नहीं हो सकती। मोदी ने कहा, ''आसियान के लिए सिंगापुर ही हमारा अहम पड़ाव रहा है। सदियों से सिंगापुर हमारे लिए पूर्व के लिए प्रवेश द्वार रहा है। सिंगापुर ही वह देश है, जो यह सिखाता है कि अगर समुद्री रास्ते सुरक्षित और खुले हों और इनके जरिए एक देश दूसरे से जुड़ते हों तो कानून का शासन स्थापित होता है और जिससे क्षेत्र के सभी छोटे-बड़े देशों में स्थायित्व और समृद्धि आती है।
उन्होंने कहा कि भारत के सिंगापुर का इसलिए विशेष महत्व है, क्योंकि वह ऐसा आसियान देश है, जो भारत के बेहद करीब स्थित है। पिछले 2000 वर्षों से मॉनसून की हवाओं समुद्री में उठने वाली लहरों और मानवीय आकांक्षाओं की ताकत हैं। भारत और सिंगापुर के बीच संबंधों को प्रागाढ़ बनाया है। ये संबंध शांति और मित्रता, धर्म और संस्कृति, कला और वाणिज्य, भाषा और साहित्य के रूप में ढले हैं।
श्री मोदी ने कहा कि पिछले तीन दशकों में भारत और सिंगापुर ने परस्पर संबंधों के इस आधार पर ही आसियान क्षेत्र में अपनी भूमिका फिर से परिभाषित किया है। सिंगापुर सहित सभी दक्षिण एशियाई देशों के साथ हमारे राजनीतिक, आर्थिक और रक्षा संबंध मजबूत हो रहे हैं। दुनिया के किसी हिस्से से ज्यादा व्यापार समझौते भारत ने इस क्षेत्र में किए हैं। सिंगापुर, जापान और दक्षिण कोरिया के साथ हमारे व्यापक आर्थिक संबंध मजबूत हुए हैं। आसियान और थाइलैंड देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते किए गए हैं। पूर्व में मलक्का की खाड़ी और दक्षिण चीन सागर भारत को प्रशांत क्षेत्र के अपने महत्वपूर्ण सहयोगियों आसियान, जापान, कोरिया गणराज्य और चीन से जोड़ता है। इन देशों के साथ हमारा व्यापार तेजी से बढ़ रहा है। हिंद महासागर क्षेत्र में भी पड़ोसी देशों के साथ हमारे संबंध मजबूत हो रहे हैं। हमें इन देशों को समुद्री सुरक्षा और आर्थिक सबलता में मदद कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर भारतीय सशस्त्र सेनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि विशेष रूप से भारतीय नौसेना हिंद प्रशांत क्षेत्र में शांति और सुरक्षा के लिए सहयोग कर रही है। वह मानवीय सहायता और आपदा की स्थितियों में बचाव कार्यों में भी मदद कर रही है। सिंगापुर के साथ जल्द ही भारत त्रिस्तरीय सैन्य अभ्यास करने जा रहा है, जिसे आगे चलकर आसियान देशों के साथ भी किया जाएगा। क्षेत्रीय सहयोग के तहत समुद्री डाकूओं से निपटने के लिए भी काम हो रहा है।
उन्होंने कहा कि भारत खुले हिंद प्रशांत क्षेत्र का पक्षधर है। उन्होंने कहा कि दुनिया अभी अपनी कामयाबी और हार के लिए लोग एक-दूसरे पर निर्भर है। कोई भी देश अपने बल पर आकार नहीं ले सकता और ना ही इसे सुरक्षित रख सकता है। ये ऐसी दुनिया है जो हमें सीमाओं और प्रतिस्पर्धा से ऊपर उठकर साथ काम करने के लिए कह रही है। ये संभव है। मैं आसियान को इसके उदाहरण और प्रेरणा के तौर पर देखता हूं।
श्री मोदी ने कहा कि आसियान देशों के साथ सहयोग और एशिया प्रशांत क्षेत्र के साथ गहरे जुड़ने के सभी प्रयास तभी संभव हो सकेंगे, जब हम बड़ी ताकतों के बीच दुश्मनी के पुराने दौर से निकलेंगे। प्रतिद्वंद्विता स्वाभाविक बात है, लेकिन ये युद्ध में नहीं बदलनी चाहिए। मतभेद को कभी भी विवाद में नहीं बदलने देना चाहिए। जब हम मिलकर काम करेंगे तो मौजूदा समय के वास्तविक खतरों से निपट सकेंगे।
प्रधानमंत्री तीन देशों की यात्रा के दूसरे चरण में गुरुवार को सिंगापुर पहुंचे। शुक्रवार को उनका सिडेंशियल पैलेस में औपचारिक स्वागत हुआ। प्रधानमंत्री ने सिंगापुर की राष्ट्रपति हलीमा याकूब और प्रधानमंत्री ली सिएन लूंग मुलाकात की। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय सहयोग, व्यापार, निवेश, कनेक्टिविटी और टेक्नोलॉजी बढ़ाने पर चर्चा हुई।
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