वर्षांत समीक्षा-2020 - सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय का दृष्टिकोण एक ऐसे समावेशी समाज का निर्माण करना है जहां पर लक्षित समूहों के सदस्य अपनीसंवृद्धि और विकास के लिए पर्याप्त समर्थन प्राप्त करने के साथ लाभकारी, सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन व्यतीत कर सकें।इसका उद्देश्य शैक्षिक, आर्थिक, सामाजिक विकास और पुनर्वास कार्यक्रमों के माध्यम से अपने लक्षित समूहों को समर्थन प्रदान करना और सशक्त बनाना है, जहां कहींभी आवश्यक हो।
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग को सामाजिक रूप से, शैक्षिकरूप से और आर्थिक रूप से हाशिए पर रहने वाले वर्गों के लोगों का सशक्तिकरण करने का अधिदेश प्राप्त है, जिसमें (i) अनुसूचित जाति (ii) अन्य पिछड़ा वर्ग (iii) वरिष्ठ नागरिक (iv) शराब और मादक पदार्थों के सेवन के शिकार लोग (v) ट्रांसजेंडर व्यक्ति (vi) भिखारी (vii) डिनोटिफाइड और खानाबदोश जनजातियां (डीएनटी) (viii) आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग (ईबीसीए) और (ix) आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) शामिल हैं।
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग (डीईपीडब्ल्यूडी) की स्थापना मई,2012 में की गई थी, जिसका उद्देश्य दिव्यांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण और समावेशन को आसान बनाना है और दिव्यांग व्यक्तियों के लिए विकास के सभी एजेंडोंकापालनकरने के लिए एक नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करना है।विकलांग व्यक्तियों का सशक्तिकरण एक अंतर-अनुशासनात्मक प्रक्रिया होती है, जिसमें रोकथाम, प्रारंभिक पहचान, मध्यवर्तन, शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यावसायिक प्रशिक्षण, पुनर्वास और सामाजिक एकीकरण जैसे विभिन्न पहलुओं को शामिल कियाजाता है।विभाग का दृष्टिकोण, मिशन और रणनीतियां निम्न प्रकार हैं: दृष्टिकोण: एक समावेशी समाज का निर्माण करना जिसमें दिव्यांगजनों के वृद्धि और विकास के लिए समान अवसर प्रदान किया जाए जिससे वे लाभकारी, सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन व्यतीत कर सकें।मिशन: दिव्यांगजनों को सशक्त बनाना, अपने विभिन्न अधिनियमों/संस्थाओं/संगठनों और पुनर्वासयोजनाओं के माध्यम से एक सक्षम वातावरण का निर्माण करना, जो ऐसे व्यक्तियों को समान अवसर प्रदान करता है, उनके अधिकारों को सुरक्षित रखता है और उन्हें समाज के स्वतंत्र और लाभकारी सदस्यों के रूप में शामिल होने में सक्षम बनाता है।
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