राष्ट्रीय जनजातीय आयोग अंडमान निकोबार द्वीप समूह की कमजोर जनजातियों के संरक्षण पर एक राष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठी का आयोजन करेगा ..

राष्ट्रीय जनजातीय आयोग (एनसीएसटी) 27 और 28 जन, 2018 को नई दिल्ली में अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह की कमजोर जनजातियों के संरक्षण विषय पर एक राष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठी का आयोजन करेगा। एनसीएसटी ने 44 मंत्रालय/विभागों को अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह की कमजोर जनजातियों के लिए अपनी-अपनी रणनीति प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया है। इस संगोष्ठी का आयोजन भारतीय मानवविज्ञान सर्वेक्षण के सहयोग से हो रहा है। विभिन्न राज्यों के 18 जनजातीय अनुसंधान संस्थानों के निदेशकों को भी जनजातीय समुदाय से जुड़े विभिन्न मसलों पर विचार-विमर्श के लिए बुलाया गया है। संगोष्ठी में 6 विश्वविद्यालयों के उप कुलपति भी भाग लेंगे। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक कमजोर जनजातीयों के विषय में अकादमिक प्रकाश डालेंगे। संगोष्ठी में जनजातीय मामलों के विशेषज्ञ, गैर सरकारी संगठन और सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधि भी अपने विचार व्यक्त करेंगे।
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में सबसे प्राचीन आदिवासी जनजातीय समूह रहते हैं। इनमें ग्रेट अंडमानीजओंजजारवासेंटिनेलिसनिकोबारीज और शॉम्पेंस जैसे जनजातीय समूह शामिल हैं। इनमें से कुछ समुदाय लुप्त होने की कागार पर हैं। इन समुदायों की समस्याओं को समझना और इनके संरक्षण के लिए कदम उठाना बेहद जरूरी है। राष्ट्रीय जनजातीय आयोग (एनसीएसटी) एक संवैधानिक निकाय है। इस निकाय का गठन संविधान के अनुच्छेद 338 (ए) के तहत जनजातीय समुदायों के हितों की रक्षा के लिए किया गया। एनसीएसटी पहली बार 2 दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन कर रहा है।
जनजातीय आधारित विषयों पर विभिन्न सत्रों का आयोजन होगा। विचार-विमर्श के दौरान अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (आदिवासी जनजातियों की सुरक्षा) विनियमन 1956, जो कि 2005 और 2012 में संशोधित किया गया तथा जारवा जनजाति के लिए 2004 में बनाई गई नीति के असर पर भी चर्चा होगी। ग्रेट निकोबार द्वीपसमूह की शोम्पेन जनजाति के लिए 2015 में  बनाई गई नीति पर संगोष्ठी में चर्चा होगी। कमजोर जनजातीय समुदाय के कल्याण के लिए सरकारी योजनाओं की भी समीक्षा होगी। इससे दूसरे राज्यों में कमजोर जनजातीय समुदाय के लिए योजनाएं तैयार करने में मदद मिलेगी।

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