संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्थापित यूनिवर्सिटी ऑफ पीस ने उपराष्ट्रपति को डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा स्थापित यूनिवर्सिटी ऑफ पीस ने उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति श्री एम.वेंकैया नायडू को डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया है। उपराष्ट्रपति को यह सम्मान ‘भारत में कानून के शासन, लोकतंत्र और सतत विकास’ के प्रति उनके योगदान के लिए दिया गया है। श्री नायडू ने कल कोस्टारिका की राजधानी सेन जोस में यूनिवर्सिटी ऑफ पीस के डीन से ‘डॉक्टर ऑफ फिलॉसिफी’ की डिग्री प्राप्त की।
संयुक्त राष्ट्र आम सभा द्वारा 1980 में पारित एक प्रस्ताव के अंतर्गत यूनिवर्सिटी ऑफ पीस की स्थापना हुई थी। भारत ने भी इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किया था। श्री वेंकैया नायडू पहले भारतीय है, जिन्हें यूनिवर्सिटी ऑफ पीस ने मानद डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया है।
2014 के बाद के तीन वर्षों के दौरान केन्द्रीय शहरी विकास मंत्री के रूप में श्री वेंकैया नायडू ने देश के तेजी से हो रहे शहरीकरण के संदर्भ में पर्यावरण अनुकूल और स्थायी शहरी योजनाओं को लागू किया था। विभिन्न नये कार्यक्रमों की शुरूआत हुई, जैसे स्मार्ट सिटी मिशन, अमृत, स्वच्छ भारत मिशन (शहरी), सभी के लिए आवास आदि। कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने, नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने, पर्यावरण अनुकूल विनिर्माण, खुले और हरित क्षेत्रों को बढ़ावा, टहलना और साइकिल चलाना, ऊर्जा संरक्षण, कचरा प्रबंधन, नागरिकों की सहभागिता आदि पर विशेष बल दिया गया। 2017 में उपराष्ट्रपति का पद ग्रहण करने के पश्चात श्री नायडू ने देश के विभिन्न भागों की यात्रायें की हैं और उन्होंने कानून के शासन, पारदर्शी प्रशासन, समावेशी विकास और संकीर्ण मानसिकता की समाप्ति पर विशेष जोर दिया है।
सम्मान ग्रहण के दौरान अपने संबोधन में श्री नायडू ने कहा कि यह मानद उपाधि मुझसे ज्यादा मेरे देश का सम्मान है। एक देश, एक सभ्यता और एक संस्कृति को यह सम्मान दिया गया है, जो सदियों से शांति का संदेश देने में अग्रणी रहा है। मैं सौभाग्यशाली हूं कि मुझे ऐसे समय में यह सम्मान प्राप्त हुआ है जब दुनिया गांधी जी की 150वीं जयंती मना रही है।
श्री नायडू ने धार्मिक कट्टरता और विध्वंसकारी ताकतों को पराजित करने का आह्वान किया। मानवता के कल्याण के लिए शांति को सुनिश्चित करना आवश्यक है। श्री नायडू ने कहा कि विचारों, भाषाओं, संस्कृतियों और धार्मिक मान्यताओं को सम्मान देना ही हम लोगों के साथ रहने की योग्यता की आधारशिला है। उन्होंने कहा कि विभिन्न धर्मों के दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर अंतर-धर्म समझ के आधार पर शांति को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हिन्दू, इस्लाम, ईसाई, बौद्ध और जैन धर्मों को हिंसा का त्याग करना चाहिए और सार्वभौमिक भ्रातृत्व तथा शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को बढ़ावा देना चाहिए।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि आतंकवाद विश्व शांति के लिए सबसे बड़े खतरे के रूप में सामने आया है। आज पूरा विश्व व्यापार, वाणिज्य और सूचना एवं प्रौद्योगिकी की मदद से आपस में गहरे रूप से जुड़ा हुआ है। भारत आतंकवाद के कुप्रभाव को झेल रहा है। श्री नायडू ने कहा कि सम्मिलित प्रयास से आतंकवाद का सामना किया जाना चाहिए।
श्री नायडू ने कहा कि असमानता और लोगों को समाज की मुख्यधारा में शामिल न करना, संघर्ष का प्रमुख कारण रहा है। उन्होंने समावेशी और सतत विकास के लिए सरकार द्वारा प्रारम्भ किये गये विभिन्न कार्यक्रमों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि नागरिकों की सहभागिता से अच्छा प्रशासन, कानून के शासन का क्रियान्वयन और तेज गति के साथ न्यायिक समाधान से लोगों की संतुष्टि में वृद्धि होती है और आपसी संघर्ष में भी कमी आती है।
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