भारतीय वैज्ञानिकों के द्वारा प्लाज्मा- पदार्थ की चौथी अवस्था, की जटिल घटनाओं के रहस्यों पर प्रकाश डालने के लिये सिद्धांत
भारतीय वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक सिद्धांत विकसित किया है जो मैग्नेटोस्फेयर- पृथ्वी के चारों और अंतरिक्ष का भाग जो पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र द्वारा नियंत्रित होता है, में सूर्य और पृथ्वी के पारस्परिक संबंध की जटिल प्रकृति को समझने में मदद करता है। इस नये सिद्धांत ने आयन-छिद्र संरचनाओं (एक जगह पर सीमित प्लाज्मा क्षेत्र जहां पर आयन घनत्व आस-पास के प्लाज्मा से कम है) के रहस्यों को खोलने के लिये अनेक अवसर दे दिये हैं। वे अब विकसित किये गये सिद्धांत का उपयोग करते हुए विभिन्न जगहों और खगोल भौतिकीय वातावरण में देखे गये आयन छिद्र संरचनाओं के विस्तृत अध्ययन पर काम कर रहे हैं।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार की एक स्वायत्त संस्थान भारतीय भूचुंबकत्व संस्थान (आईआईजी) के एक समूह जिसमें श्री हरिकृष्णन, प्रोफेसर अमर काकड और प्रोफेसर भारती काकड शामिल थे, ने एक ऐसा सिद्धांत विकसित किया जो पृथ्वी के मैग्नेटोस्फेयर और सैद्धांतिक भविष्यवाणियों का अध्ययन करने के लिये नासा के रोबोटिक अंतरिक्ष अभियान- मैग्नेटोस्फेरिक मल्टीस्केल (एमएमएस) मिशन के द्वारा दर्ज निरीक्षणों के बीच अंतर को लेकर हर अनिश्चितता को पूरी तरह से हल करता है। उन्हें अमेरिका के मैरीलैंड विश्वविद्यालय के प्रो. पीटर यून का भी समर्थन प्राप्त हुआ। उन्होंने इसे पूरी तरह खारिज कर दिया कि एक विशेष तरह की बर्नस्टीन ग्रीन क्रस्कल तरंगें जिसे उनकी भविष्यवाणी करने वाले वैज्ञानिक के नाम पर नाम दिया गया, के उत्पन्न होने के लिये आयन और इलेक्ट्रॉन के बीच तापमान अनुपात को ऊपरी सीमा पर होना आवश्यक है। उन्होंने बताया कि इलेक्ट्रॉन जो कि आयन छिद्र डायनामिक्स का हिस्सा नहीं हैं, वे भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह कार्य 'मंथली नोटिसेस ऑफ द रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी' जर्नल में भी प्रकाशित हुआ है।
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