फिक्की उच्च शिक्षा शिखर सम्मेलन में भारत के माननीय राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद का संबोधन

1.      फेडरेशन ऑफ इंडियन चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री(फीक्की) द्वारा मानव संसाधन विकास मंत्रालय और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के सहयोग से आयोजित किए जा रहे 15वें उच्च शिक्षा शिखर सम्मेलन 2019 को संबोधित करते हुए मुझे खुशी महसूसहो रही है।इस वैश्विक सम्मेलन को उच्च शिक्षा पर विवेचन नेतृत्व फोरम में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान हासिल करने के लिए किया जा रहा है।इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए हमारे पास भारत और विदेश के हितधारकों का एक बड़ा और विविधतापूर्ण जमावड़ा है। मुझे यकीन है कि आप इस संस्करण को पिछले वाले संस्करणों की तरह  संपन्न बनाएंगे।
2.      एक सार्वजनिक-नीति वाले मुद्दे के रूप में उच्च शिक्षा को दुनिया भर में प्राथमिकतामिली हुई है। इसे सामाजिकआर्थिकवैज्ञानिक, बौद्धिक प्रगति और उन्नति के मूल प्रवर्तक के रूप में देखा जाता है।भारत के संदर्भ मेंहमारे पास उच्च शिक्षा का एक विशिष्ट इतिहास रहा है जो कि हमें प्रेरित करता है, क्योंकि हम अपने विश्वविद्यालयों को ज्ञान और सीखने के फुहारों के रूप में मजबूत और रोशन करने का काम करते हैं। भारत के पास दुनिया का सबसे पुराना विश्वविद्यालय है।7 वीं शताब्दी में नालंदा विश्वविद्यालय अपनी चरम अवस्था में था और इसके परिसर में पूरे एशिया से लगभग 10,000 छात्र नामांकित थे।शिक्षा के इन प्राचीन मंदिरों में प्रचलित शिक्षण के तरीकों और महत्वपूर्ण विश्लेषणों पर जोर देना प्रासंगिक हो सकता है क्योंकि हम शिक्षाशास्त्र में आधुनिक रुझानों को देख रहे हैं।
3.      उच्च शिक्षा और सामान्य शिक्षा के माध्यम से लोगों कोप्रविष्ट कराने से राष्ट्र निर्माण में बहुद्देशीयप्रभाव पड़ता है। निवेश एक बार किया जाता हैलेकिन उसके लाभांश में निरंतरता बनी रहती है।मैं मैसूर के दिवंगत महाराजा, जयचामराजा वाडियार के प्रबुद्ध "सम्राट - डेमोक्रेट" के शताब्दी समारोह में शामिल होने के लिए मैसूर गया था।वे उच्च शिक्षा के पथ प्रदर्शक थे जिन्होंने उदारता के साथ अपने लोगों का उसमेंप्रविष्ट कराया था। महाराजा ने कई दशक पहले लोगों को सशक्त बनाने के लिए जो कदम उठाया थावह आज बेंगलुरुमैसूरु और आसपास के क्षेत्रों में तकनीकी परिवर्तन की मजबूत नींव प्रदान कर रहा है। हमारेजैसा देश जो कम समय में खुद को बदलना चाहता हैतो उसे सबसे पहले अपनी उच्च शिक्षा की यात्रा में बदलाव करना होगा।

देवियो और सज्जनों,
4.      उच्च शिक्षा एक ऐसा विषय है जो मेरे दिल के करीब, दोनों व्यक्तिगत और पेशेवर कारणों से रहा है। मैंने खुद इसकीशक्ति और सामर्थ्य को इंट्रा-जेनरेशनल परिवर्तन और गतिशीलता लाने में अनुभव किया है।भारत के राष्ट्रपति के रूप मेंमैं 152 विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों का कुलाध्यक्ष हूँ। मुझे लगभग सभी कुलपतियों और निदेशकों के साथ बातचीत करने का अवसर मिला है।भारत में दुनिया का सबसे बड़ा उच्च शिक्षा पारिस्थितिकी तंत्रों में से एक है, जहां पर 990 से अधिक विश्वविद्यालय हैं। हम उनके मानकों को बेहतर बनाने और उन्हें वैश्विक ज्ञान केंद्रों में तबदील करने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। हमने अभी नई शिक्षा नीति पर देशव्यापी परामर्शअभियान शुरू किया है। यह भारतीय शिक्षा परिदृश्य को 21 वीं सदी की आवश्यकताओं के अनुकूल बदलने में मदद करेगा।
5.      आने वाले समय में दुनिया ज्ञानमशीन-बुद्धिमत्ता और डिजिटल मार्गोंके माध्यम से संचालित होगी।इन परिवर्तनों के लिए खुद को तैयार करने और इसके असीम अवसरों का लाभ उठाने के लिएहमें अपनी उच्च शिक्षा को नए पाठ्यक्रमों और गहन शोध-नीति के साथ पुनर्व्यवस्थित करना होगा।हमारे पाठ्यक्रम में विचारनवीनता और उद्भवन को प्रधानता दिया जाना चाहिए। भारत के पास दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा वैज्ञानिक मानव संसाधन पूल है।यदि हम मजबूत अकादमिक-उद्योग शृंखला स्थापित करते हैंतो हमारे पास दुनिया काअनुसंधान और विकास (आर एंड डीकीराजधानी बनने की क्षमता है।विज्ञान के साथ-साथ उदार कलाओं और मानविकी पर भी समान रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए - क्योंकि प्रौद्योगिकी के परिणामों को अंततः व्यक्तियोंसमुदायों और संस्कृतियों के लिए प्रासंगिक बनाना होगा। विषयों का आपस में संबद्धता आज केवल एक वास्तविकता नहीं हैबल्कि यह ज्ञान का अंदरूनी तत्वहै।मुझे इस बात की खुशी है कि हमारे विश्वविद्यालयों ने पहले से ही अंतर-अनुशासनात्मक दृष्टिकोण के साथ प्रगति की हैगणित के साथ संगीत का पाठ्यक्रम और पशुपालन के साथ कृत्रिम बुद्धिमत्ता। इस संदर्भ में अभी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।

देवियो और सज्जनों,
6.      एक और महत्वपूर्ण पहलू जिसको हमें देखने की आवश्यकता है, वह यह है कि हमारी शिक्षा प्रणाली में शैक्षणिक परिवर्तन को कैसे लाया जाए।जांच की भावनाआलोचनात्मक सोच और मुद्दों और दृष्टिकोणों को देखनेसमझने की एक समग्र संस्कृति का पोषण करने की आवश्यकता है।हमारे छात्रों के दिमाग में रचनात्मकताकल्पना और विचार को खोलना होगा और इसकी प्रचुरता को फलने-फूलने की अनुमति प्रदान करनी होगी।इस शैक्षिक पुनर्जागरण को लाने के लिएहमें कई मोर्चों पर नई अवधारणाओं के संदर्भ में व्यवहारिक समायोजन और खुलेपन की आवश्यकता होगी: शैक्षिक नेतृत्व के स्तर परछात्र-शिक्षक संबंध के स्तर परऔर प्रौद्योगिकी एकीकरण के स्तर पर।यह तभी संभव हो सकेगा जब आपके पास आगे बढ़ने के लिए एक विजन हो और चीजों को यथार्थ बनाने की प्रतिबद्धता हो। इस संदर्भ मेंमैं मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा शुरू किए गए कार्यक्रमों की सराहना करना चाहूंगा –लीप,जो कि "लीडरशीप फॉर ऐकैडमीशियन्स प्रोग्राम" है और अर्पित जो कि "ऐन्यूअलरिफ्रेशर प्रोग्राम इन टीचिंग" है।जहां पर लीपका उद्देश्य उच्च शिक्षा प्रशासकों के बीच नेतृत्व और विजन का निर्माण करना हैवहीं अर्पित का उद्देश्य हमारे शिक्षकों के शैक्षणिक कौशल में सुधार लाना है।
7.      इससे पहले मैंने हमारे प्राचीन विश्वविद्यालयों के बारे में बात की थी। उनके पास एक सीखने की संस्कृति थी जहां पर विचारों और अवधारणाओं का लगातार परीक्षण किया जाता था और वे सत्यापन और महत्वपूर्ण विश्लेषण के अधीन थे। वह प्रणाली जिसने पाणिनिआर्यभटचरक और कौटिल्य जैसे विद्वानों का निर्माण कियावैसीप्रणाली को फिर से मजबूत करना होगा।हमें अपनी असंख्यज्ञान परंपराओं में संग्रहीत ज्ञान को फिर से खोलने के लिए आधुनिक उपकरणों का उपयोग करना चाहिएयहां तक ​​कि हम मशीन-बुद्धिमत्ता युग के अवसरों का भी अनुकूलन करते हैं।एक खुली शिक्षा संस्कृति नया करने की भावना को बढ़ावा देगी और हमारे विश्वविद्यालयों में स्थापित अटल इनोवेशन सेंटरों को नया पंख प्रदान करेगी।
      देवियो और सज्जनों,
8.      हमारी आर्थिक जरूरतें विशाल हैं। अगले कई दशकों मेंभारत अपने लोगों के रहन-सहन के उच्च मानकों के कारण जबरदस्त विकास का गवाह बनेगा। ये सभी मांग करते हैं कि हम अपनी उच्च शिक्षा प्रोफ़ाइल में नई ऊर्जा और गतिशीलता को लेकर आएं।सैद्धांतिक और व्यावहारिक ज्ञान के संयोजन के लिए व्यावसायिक शिक्षाप्रशिक्षुता और इंटर्नशिप जैसे कार्यक्रमों की आवश्यकता है। हमें वैश्विक संस्थानों और अनुभवों की ओरभी आकर्षित होने और सीखने की आवश्यकता है।
9.      ठीक इसी समयभारत के विविध उच्च शिक्षा वाले पारिस्थितिकी तंत्र दुनिया के लिए बड़े पैमाने पर अवसर प्रदान करते हैं।वैश्वीकरण की ताकतों ने अंत: सांस्‍कृतिकअनुभव और एकीकृत निर्माण सीखने के लिए खुदअपनी अनिवार्यताओं को खड़ा किया है। वैश्विक ज्ञान के गंतव्य स्थल के रूप में भारत कोउभारने के लिएभारत सरकार द्वारा अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को आकर्षित करने के लिए "भारत में अध्ययन" कार्यक्रम की शुरूआत की गई है।हमारे विश्वविद्यालयों में संकायछात्रोशिक्षाशास्त्र और ज्ञान का आदान-प्रदान करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क भी विकसित किया जा रहा है। हमारी उच्च शिक्षा पारिस्थितिकी तंत्र को विश्वस्तरीय बनाने से उन भारतीय छात्रों को भी व्यापक रूप से विकल्प मिल सकेगाजो गुणवत्तापूर्ण शिक्षाप्राप्त करनेके लिए विदेश जाते हैं।
      देवियो और सज्जनों,
10.  उच्च शिक्षा की दुनिया प्रसरणशीलहै। इसको विकसित करने और खुद को सशक्त बनाने के लिएहमें सभी हितधारकों - नीति निर्माताओंशिक्षाविदोंशोधकर्ताओंउद्यमियों और अन्य लोगों- के समर्थन की आवश्यकता है।हमारे देश की सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुएसार्वजनिक संस्थान इसमें मुख्य भूमिका निभाएंगे। लेकिन इस राष्ट्रीय प्रयासों में निजी क्षेत्र को भीअपना योगदान देना जारी रखना चाहिए।हमें अनुसंधान और छात्रवृत्ति को बढ़ावा देने के लिए वित्त पोषण के नए मॉडल पर भी ध्यान देना होगा। पिछले महीने हीमुझे आईआईटी दिल्ली अक्षय निधि कोष की शुरूआत करने काअवसर मिला था।यह भारत में अपनी तरह का पहला कोष है और यह भूतपूर्व छात्रों के योगदान पर आधारित है।बहुत कम समय में ही इस कोष ने 250 करोड़ रुपये जुटा लिए हैं और इसका लक्ष्य आईआईटी दिल्ली में अकादमिक उत्कृष्टता और अनुसंधान में सहयोग करने के लिए 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाना है।हमारी उच्च शिक्षा प्रणाली को मजबूती प्रदान करने के लिए अधिक से अधिक लोगों की भागीदारी को सुनिश्चित करने से मैं फिक्की की उच्च शिक्षा समिति से बहुत प्रभावित हूं।
11.  जैसा कि हम उच्च शिक्षा को सार्वजनिक हित के रूप से देखते हैंभारतीय संदर्भ में एक महत्वपूर्ण अभिप्राय यह है कि शिक्षा की गुणवत्ता में क्षेत्रीय असंतुलन से कैसे निपटा जाए। हम इस अंतर को कम करने की कोशिश कर रहे हैंलेकिन बहुत अधिक पहलों को करने की आवश्यकता है।एक अन्य संबंधित पहलू ग्रामीण-शहरी विभाजन है, जिसे हम उच्च शिक्षा के क्षेत्र में देखते हैं। हमारे संस्थापक पिताओंमहात्मा गांधी और रवींद्रनाथ टैगोर ने इस विषय पर विस्तृत रूप से ध्यान दियाचाहे वह वर्धा में मेडिकल कॉलेज हो या शांति निकेतन में विश्व भारती।इस वर्ष मुझे इन दोनों उत्कृष्ट परिसरों का दौरा करने का अवसर प्राप्त हुआ। हमारे समावेशी विकास और प्रगति के लिएहमें उनसे प्रेरणा लेना होगा और उनके विचारों पर निर्माण करना होगा। इस प्रयास मेंडिजिटलक्लासरूमई-लर्निंग और नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी जैसे प्रौद्योगिकी प्लेटफ़ॉर्म एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
             देवियो और सज्जनों,
12.  मैंने आपलोगों के सामने उच्च शिक्षा पर अपने कुछ विचारों को रखा है। यह आप परहितधारकों परअब निर्भर करता है कि सही दिशा में आगे बढ़ें।और जैसा कि आप विचार-विमर्श करते हैं और चर्चा करते हैंमैं आपको संस्कृत की एक पुरानी कहावत याद दिलाना चाहता हूंऔर उसको उद्धृत करता हूं:“ सा विद्या या विमुक्तये” जिसका मतलब है कि "सच्ची शिक्षा वह है जो स्वाधीन करता है"। आइए हम सब मिलकर ऐसे विश्वविद्यालयऐसी कक्षाऐसा पाठ्यक्रमऐसी संस्कृति का निर्माण करेंजो हमारे छात्रों को एक इंसान के रूप में हमारे लोगोंहमारे राष्ट्र और विश्व की सेवा में उन्हें उनकी क्षमता का एहसास कराती है।

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