लखनऊ में एक ऐसा मन्दिर जहां शनि शिला की पूजा होती शनि भगवान की माता छाया की प्रतिमा स्थापित प्रत्येक शनि अमावस्या पर होता है विशेष आयोजन


भगवान शनिदेव के उपासक एवं सिद्धहस्त राजस्थान निवासी ब्रह्मलीन स्वामी श्री विरक्तानन्द जी महाराज मध्य प्रदेश के जनपद मुरैना स्थित शनि पर्वत से 1992 में श्री शनिदेव शिला लाये थे और 11 वर्षों तक ध्यान मग्न रह कर साधना (घोर तपस्या) कर शिला की आराधना करते रहें। इसी मध्य स्वामी विरक्तानन्द जी महाराज की लखनऊ निवासी श्री बद्री नारायण से भेंट हुई। बद्री नारायण प्रत्येक शनिवार को लखनऊ से लगभग 400 कि0मी0 दूर मुरैना (शनि पर्वत) भगवान शनिदेव के दर्शन के लिये जाते थे। स्वामी जी उनकी शनि महाराज के प्रति आस्था एवं भक्तिभाव को देखकर बहुत प्रभावित हुए। स्वामी विरक्तानन्द जी महाराज ने बद्री नारायण से लखनऊ में किसी स्थान पर सिद्ध ‘श्री शनि शिला’ की स्थापना करने की इच्छा व्यक्त की तो वे स्वामी जी की इच्छा को टाल नहीं सके और लखनऊ के अहिमामऊ क्षेत्र स्थित अपनी भूमि पर ‘श्री शनि शिला' स्थापित करने हेतु सहर्ष तैयार हो गये। इस प्रकार लखनऊ के अहिमामऊ क्षेत्र में सन् 2003 में इस अद्भुत एवं सिद्ध शिला की स्थापना हुई, जो आज ‘श्री शनिदेव अहिमामऊ धाम' के नाम से प्रसिद्ध है। भगवान शनिदेव में आस्था रखने वाले श्री बद्री नारायण द्वारा संरक्षक के रूप में आज भी ब्रह्मलीन स्वामी जी की आज्ञा का पालन करते हुए ‘श्री शनि शिला' की नियमित एवं विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर भगवान श्री शनिदेव का आर्शीवाद प्राप्त किया जा रहा है।
‘श्री शनिदेव अहिमामऊ धाम' की कृपा से अहिमामऊ क्षेत्र का तीव्रगति से विकास हो रहा है। प्रत्येक शनिवार को यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण पहुंचते हैं। ‘श्री शनिदेव अहिमामऊ धाम’ का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिये एक बार अवश्य दर्शन करें।
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