राज्यपाल की अध्यक्षता में राजभवन, लखनऊ में नीति आयोग, भारत सरकार द्वारा ‘‘ईज ऑफ डूइंग रिसर्च एवं डेवलेपमेंट’’ विषय पर दो दिवसीय परामर्श बैठक का शुभारम्भ हुआ

लखनऊ : 27 मई, 2025
उत्तर प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल की अध्यक्षता में आज राजभवन, लखनऊ में नीति आयोग, भारत सरकार द्वारा ‘‘ईज ऑफ डूइंग रिसर्च एवं डेवलेपमेंट’’  विषय पर दो दिवसीय परामर्श बैठक का आयोजन किया गया। इस उच्चस्तरीय बैठक का उद्देश्य देश के अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ बनाना तथा इस क्षेत्र में संरचनात्मक एवं प्रक्रियात्मक बाधाओं की पहचान कर उन्हें दूर करते हुए ‘ईज़ ऑफ डूइंग रिसर्च’ को बेहतर बनाना है। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के आह्वान पर नीति आयोग द्वारा देशभर में आयोजित की जा रही इस परामर्श श्रृंखला के अंतर्गत प्रमुख वैज्ञानिक, शैक्षणिक व अनुसंधान संस्थानों के प्रतिनिधि एक मंच पर एकत्र हुए। इस अवसर पर नीति आयोग के माननीय सदस्य डॉ0 वी0के0 सारस्वत द्वारा राज्यपाल जी को नीति आयोग की रिपोर्ट सौंपी गयी।
इस अवसर पर राज्यपाल जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि हम एक ऐसे युग में प्रवेश कर रहे हैं जहाँ नवाचार ही प्रगति की कुंजी है। उन्होंने अनुसंधान क्षेत्र में नीतिगत सुधार, वित्तपोषण तंत्र में पारदर्शिता, प्रशासनिक प्रक्रियाओं के सरलीकरण, नियामक ढाँचे में लचीलापन तथा संस्थागत प्रथाओं में नवाचार की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए कहा कि शोधकर्ताओं पर अनावश्यक प्रशासनिक बोझ उनके अनुसंधान कार्य में बाधा उत्पन्न करता है, जिसे दूर करना आवश्यक है।
राज्यपाल जी ने उत्तर प्रदेश की विशेष भूमिका पर बल देते हुए कहा कि राज्य की युवा शक्ति, परंपरागत ज्ञान और औद्योगिक विकास की संभावनाओं को नवाचार के साथ जोड़कर आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाई जा सकती है। यू0जी0सी0 द्वारा प्रदेश के 14 विश्वविद्यालयों को बहु विषयक शिक्षा व अनुसंधान के लिए चिन्हित किया गया है, और क्यूएस एशिया रैंकिंग में भी विश्वविद्यालयों ने सराहनीय प्रदर्शन किया है। यह संकेत है कि प्रदेश की शिक्षण संस्थाएं वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार हो रही हैं।
उन्होंने विश्वास जताया कि इस परामर्श बैठक से प्राप्त सुझाव राज्य विश्वविद्यालयों की रैंकिंग, ग्रेडिंग एवं शैक्षिक गुणवत्ता को बेहतर बनाएंगे। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों का दायित्व केवल डिग्री प्रदान करना नहीं, बल्कि नवाचार एवं अनुसंधान की संस्कृति को विकसित करना भी है। उन्होंने सुझाव दिया कि अनुसंधान को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए और स्थानीय समस्याओं पर आधारित शोध को प्राथमिकता दी जाए। विश्वविद्यालयों को मिलने वाली अनुसंधान ग्रांट का समय पर भुगतान अनिवार्य है, अन्यथा शोध में अनावश्यक बाधा उत्पन्न होती है। साथ ही उन्होंने प्रशासनिक प्रक्रियाओं को शीघ्रता एवं प्रभावशीलता से निस्तारित करने के निर्देश दिए।
राज्यपाल जी ने बताया कि उत्तर प्रदेश के राज्य विश्वविद्यालयों को आंगनबाड़ियों से जोड़कर उन्हें सशक्त बनाने की दिशा में विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। आंगनबाड़ी ही बच्चे की प्रारंभिक शिक्षा का आधार होती है और यह एक सुदृढ़ फाउंडेशन का कार्य करती है। यदि नींव मजबूत होगी, तभी शिक्षा व्यवस्था भी मजबूत होगी। उन्होंने कहा कि गर्भस्थ शिशु से ही शिक्षा की शुरुआत हो जाती है, इस विषय पर भी अनुसंधान होना चाहिए, तभी वास्तविक परिवर्तन संभव है। शिक्षा की प्रक्रिया आंगनबाड़ी से लेकर उच्च शिक्षा तक निरंतर एवं संगठित होनी चाहिए। शिक्षकों की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करना अति आवश्यक है, क्योंकि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए योग्य एवं समर्पित शिक्षकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।
उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रभावी क्रियान्वयन पर भी बल देते हुए कहा कि जो विश्वविद्यालय अनुसंधान के प्रति संकल्पित हैं, उन्हें सीधे फंड दिए जाने चाहिए ताकि वे बाधारहित अनुसंधान कार्य कर सकें। शिक्षा कोई साधारण प्रयोग नहीं है, यह अत्यंत गंभीर और राष्ट्र निर्माण से जुड़ा कार्य है, जिसे पूरी निष्ठा और समर्पण से किया जाना चाहिए।
राज्यपाल जी ने यह भी जानकारी दी कि उत्तर प्रदेश के राज्य विश्वविद्यालयों द्वारा विदेशों के अनेक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के साथ एमओयू किए गए हैं, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार की समस्त जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ लक्षित लाभार्थियों तक समय पर पहुँचना सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इसके लिए प्रशासनिक कार्यों में संवेदनशीलता अपनाते हुए फाइलों की नियमित समीक्षा एवं त्वरित निस्तारण आवश्यक है।
उन्होंने अनुसंधान विषयों के चयन में भी अत्यंत संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि शोध ऐसे विषयों पर केंद्रित होने चाहिए जो समाज के व्यापक हित में हों और जिनसे समाज कल्याण के ठोस समाधान निकल सकें। प्रधानमंत्री के “विकसित भारत“ के विजन के अनुरूप यदि सभी स्तरों पर समन्वयपूर्वक कार्य किया जाए, तो उत्कृष्ट परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। शोध परियोजनाओं का निर्माण, उनका प्रस्तुतिकरण और विशेषज्ञों द्वारा मार्गदर्शन ये सभी प्रक्रियाएँ सुदृढ़ की जानी चाहिए। विश्वविद्यालयों को टेक्नोलॉजी के साथ-साथ मेडिकल कॉलेजों को भी इस कार्य में जोड़ना चाहिए, ताकि बहुआयामी एवं व्यावहारिक अनुसंधान संभव हो सके। समूह बनाकर योजनाबद्ध ढंग से कार्य करना अधिक प्रभावी होता है।
राज्यपाल जी ने कहा कि भारत आज अपने प्राचीन ज्ञान और वर्तमान प्रतिबद्धता के साथ वैश्विक मंच पर अग्रसर है। उन्होंने विशेष रूप से कृषि क्षेत्र का उल्लेख करते हुए कहा कि कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा किए जा रहे कार्य अत्यंत सराहनीय हैं और शोध, नवाचार तथा स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप समाधान प्रस्तुत कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वह यहां उपस्थित सभी विशेषज्ञों से अपेक्षा करती हैं कि वे अपने बहुमूल्य अनुभव और विचार इसी प्रकार साझा करते रहेंगे, जिससे भारत का शैक्षिक परिदृश्य और अधिक सशक्त व समृद्ध हो।
इस अवसर पर नीति आयोग के सदस्य डॉ. वी.के. सारस्वत ने अनुसंधान एवं विकास को राष्ट्रीय विकास का आधार बताते हुए कहा कि भारत में संस्थागत ढांचे और प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सरल कर अनुसंधान को अधिक परिणामोन्मुखी बनाया जा सकता है। उन्होंने अनुसंधान में निवेश, सरकारी पहलों और उनके प्रभावों पर चर्चा करते हुए कहा कि रणनीतिक सुधारों से भारत को नवाचार के वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित किया जा सकता है।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए अपर मुख्य सचिव श्री राज्यपाल डॉ. सुधीर महादेव बोबडे ने कहा कि राज्यपाल जी के मार्गदर्शन और प्रेरणा से राज्य के विश्वविद्यालयों में निरंतर प्रगति हो रही है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश ने उल्लेखनीय उपलब्धियाँ अर्जित की हैं और एक क्रांतिकारी परिवर्तन आया है। प्रदेश के आठ राज्य विश्वविद्यालयों को नैक से ग्रेडिंग प्राप्त हुई है, जो कि एक बड़ी उपलब्धि है और उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में आई सुधार को दर्शाता है। उन्होंने विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या को नैक द्वारा ए प्लस प्लस की सर्वोच्च ग्रेडिंग प्राप्त होने पर सराहना करते हुए कहा कि यह गौरव का विषय है कि यह विश्वविद्यालय पूरे भारत का पहला कृषि विश्वविद्यालय है जिसे यह सर्वोच्च ग्रेडिंग प्राप्त हुई है।
नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज, इंडिया के अध्यक्ष प्रोफेसर विनोद कुमार सिंह ने अनुसंधान और उच्च शिक्षा क्षेत्र की चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अनुसंधान को लोकप्रिय और सतत बनाए रखने के लिए मजबूत फंडिंग मेकेनिज्म और सहयोगात्मक ढांचे की आवश्यकता है। उन्होंने अनुदान वितरण और प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सरल और पारदर्शी बनाए जाने की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि व्यापक सुधारों से भारत अनुसंधान में वैश्विक नेतृत्व कर सकता है।
नीति आयोग के वरिष्ठ सलाहकार प्रोफेसर विवेक कुमार सिंह ने स्वागत भाषण में बताया कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में अनुसंधान एवं विकास को सशक्त बनाने हेतु नीति आयोग ने एक राष्ट्रीय पहल शुरू की है। ‘‘ईज ऑफ डूइंग रिसर्च एवं डेवलेपमेंट’’ विषयक इस परामर्श बैठक का उद्देश्य वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों, कुलपतियों और नीति निर्माताओं को एक मंच पर लाकर अनुसंधान से जुड़ी संरचनात्मक और प्रक्रियागत चुनौतियों के समाधान तलाशना है।
आज आयोजित परामर्श बैठक के पहले तकनीकी सत्र में “राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर अनुसंधान एवं विकास हेतु वित्त पोषण एवं सहायता संरचना“ विषय पर विशेषज्ञों ने अपने विचार एवं सुझाव प्रस्तुत किए।
इस सत्र में  प्रोफेसर मनीष आर. जोशी, सचिव विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने अनुसंधान एवं विकास की आवश्यकता पर बल देते हुए भारत को वैश्विक अनुसंधान हब बनाने की दिशा में हो रहे प्रयासों पर चर्चा की। उन्होंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा इस हेतु किये जा रहे प्रयासों तथा फंडिंग अपॉर्च्युनिटीज की जानकारी साझा की।
प्रोफेसर उज्जवल सेन, निदेशक, हरिशचंद्र अनुसंधान संस्थान, प्रयागराज ने अनुसंधान सुविधाओं को सुदृढ़ करने हेतु उपायों पर प्रकाश डाला।
बरेली विश्वविद्यालय के कुलपति, प्रोफेसर के.पी. सिंह ने राज्य विश्वविद्यालयों में अनुसंधान हेतु आ रही व्यावहारिक समस्याओं और उनके संभावित समाधानों को प्रस्तुत किया। उन्होंने फंडिंग एजेंसियों, केंद्र एवं राज्य सरकार की अनुसंधान एवं विकास बजट संरचना और उत्तर प्रदेश में अनुसंधान के अवसरों पर विचार साझा किए।
आईआईटी कानपुर के एसोसिएट डीन, प्रो0 राजा अंगमुथु ने अनुसंधान हेतु सरकारी संस्थाओं द्वारा  जाने वाली वित्तीय सहायता एवं उसके वितरण की प्रक्रिया पर विस्तार से चर्चा की।
सत्र के अंत में सीएसआईआर-सीडीआरआई, लखनऊ की निदेशक डॉ. राधा रंगराजन ने फंड की उपलब्धता, समय पर फंड वितरण, एवं शोध में आ रही चुनौतियों पर विचार रखे।
सत्र के समापन में उपस्थित प्रतिभागियों ने प्रश्नोत्तर सत्र के माध्यम से अपनी जिज्ञासाएं व्यक्त कीं। उन्होंने अनुसंधान में फंडिंग से जुड़ी समस्याएं जैसे कि समय पर फंड न मिलना, शोध हेतु विश्वविद्यालयों में आ रही व्यावहारिक समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित किया। साथ ही उन्होंने कुछ उपयोगी सुझाव भी दिए जैसे फंडिंग की समयबद्ध प्रक्रिया, रिसर्च फैकल्टी की संख्या में वृद्धि, और इंफ्रास्ट्रक्चर को सुदृढ़ करना आदि।
आज आयोजित तकनीकी सत्र द्वितीय में “अनुसंधान एवं विकास हेतु विनियामक ढांचा और प्रशासनिक प्रक्रियाएं“ विषय पर विस्तृत चर्चा की गई। सत्र की अध्यक्षता करते हुए विषय विशेषज्ञों ने अपने अनुभवों और सुझावों को साझा किया।
सत्र का प्रारंभ श्री आदर्श खरे, प्रिंसिपल एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर, अनुसंधान डिजाइन एवं स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन, लखनऊ द्वारा किया गया, जिन्होंने अनुसंधान एवं विकास में आने वाली प्रशासनिक जटिलताओं तथा मौजूदा विनियामक ढांचे पर प्रकाश डाला।
इसके पश्चात प्रोफेसर महेश जी. ठक्कर, निदेशक, बीरबल साहनी इंस्टिट्यूट ऑफ़ पैलियोसाइंस, लखनऊ ने रिसर्च स्पेक्ट्रम, फंडिंग इकोसिस्टम तथा प्रशासनिक प्रक्रियाओं की विस्तार से चर्चा की। उन्होंने अनुसंधान फंडिंग प्रक्रिया को सरल बनाने एवं अकादमिक जगत तथा औद्योगिक क्षेत्र के मध्य सहयोग को सुदृढ़ करने की आवश्यकता पर बल दिया।
डॉ. हरिशंकर जोशी, निदेशक, आईसीएमआर, गोरखपुर ने अनुसंधान के क्षेत्र में नियामक ढांचे एवं प्रशासनिक कार्यप्रवाह की भूमिका पर विचार व्यक्त किए।
प्रोफेसर जे.पी. सैनी, कुलपति, मदन मोहन मालवीय टेक्निकल विश्वविद्यालय, गोरखपुर ने अनुसंधान एवं विकास के समक्ष मौजूद चुनौतियों, जैसे फंडिंग की सीमाएं, संसाधनों की उपलब्धता और प्रशासनिक बाधाओं पर प्रकाश डाला।
डॉ. सौम्या पाठक, वरिष्ठ वैज्ञानिक, सीएसआईआर, लखनऊ ने प्रगतिशील अनुसंधान के लिए आवश्यक सुधारों, एकीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म की स्थापना तथा ‘इज ऑफ डूइंग रिसर्च’ में नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता पर जोर दिया।
सत्र के अंत में विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपति एवं संस्थानों के निदेशकगणों की जिज्ञासाओं और प्रश्नों का समाधान नीति आयोग के सदस्यों द्वारा किया गया, जिससे सभी प्रतिभागियों को विषय की व्यापकता एवं भावी संभावनाओं को समझने में सहायता मिली।
इस अवसर पर नीति आयोग के सदस्य श्री वी. के. सारस्वत, अपर मुख्य सचिव श्री राज्यपाल डॉ. सुधीर महादेव बोबडे, वरिष्ठ सलाहकार प्रो. विवेक कुमार सिंह, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सचिव प्रो. मनीष जोशी, विभिन्न विश्वविध्यालयों के कुलपति व प्रतिनिधिगण, विविध शोध संस्थानों के निदेशकगण, परामर्शदातागण एवं अन्य अधिकारीगण उपस्थित रहे।


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